Thursday, January 3, 2013

क्या जबाब दूं ??


सोच रहा हूँ क्या जबाब दूं अपनी लाडली को,
जिसने पूछी है माँ ये रेप होता है क्या?

भर आई है आखें, जी करता है रोक लूँ अपनी साँसों को,
कैसे समझाऊ अपनी लाडली को, की रेप होता है क्या?

देखता हूँ हर सुबह अखबार के पन्नो को,
जहाँ रेप, खुन और भ्रस्टाचार के सिवा कुछ होता है क्या?

बेच दी है इंसानों ने अपनी इंसानियत किसी भी मकसद को पाने को,
सोच के आती है शर्म, हैवानियत की हद्द भी कुछ होती है क्या?

जो कल पूछ बैठेगी बच्ची क्यों रोकते हो बाहर जाने को,
कैसे समझाऊंगी उसे बाहर भेजने का डर होता है क्या?

काँप जाए रूह भी जो देख ले इंसान की इस दरिंदगी को,
ऐ खुदा अब तू ही बता हैवानियत की हद्द भी कुछ होती है क्या?

अब निर्भय कहो या कहो दामिनी, वो नहीं रही कुछ भी सुनने को,
अब तो जाग ऐ इंसान वरना भूल जाओगे इज्ज़त की ज़िन्दगी होती है क्या?