Wednesday, July 15, 2009

बचपन की यादें…


सच ही कहाँ है किसी ने - बचपन की यादें है, भुलायें थोड़े हीं भुलायी जाती
यकीन नहीं होता इतने बरस हो गए जब पड़ोस के दादाजी ने पापा से कह के मेरी धुलाई करवाई थी
किया तो कुछ भी नहीं था, बस उनकी लाठी छुपायी थी
अगले दिन माँ ने बड़े प्यार से समझाया था, बेटा ऐसे हरकत क्यों करते हो, मुफ्त में धुल जाते हो
फिर क्या था, कुछ दिनों की सराफत देख छोटे चाचाजी भी बोल पड़े, पिछली बार ज्यादा लगीं थी क्या?

इस बार तो सराफत की हदें पार हो जाती अगर स्कूल से आते समय गन्ने के लहराते खेत पे नज़र न जाती
दोस्तों ने इशारो ही इशारों में कुछ ठान लिया और मैंने भी पिछली पिटाई भूल दोस्तों की सारी शर्ते मान लिया
हम तो मानो बच ही निकले थे लेकिन गन्ने की पतोई की आवाज़ ने मालिक को जगा दिया...
ढलती हुयी शाम को भी उस जालिम ने आधों को उल्टे पैर दौड़ा दिया
किस्मत से अपनी तरकीब काम कर गयी, मालिक के निकलते ही दूसरी तरफ से गन्ने के खेत में ही छुप लिया!

वोह कुछ आखिरी महिना था प्राईमरी स्कूल का, जब दिमाग की बत्ती जलाया था
पिंटू के साथ स्कूल बंक कर, सारा दिन आम के पेड़ पे बिताया था
अच्छा हुआ जो पापा को इस बात की भनक भी नहीं लगी
वरना हम तो भागते फिरते रहते गाँव की गली गली!

मज़ाक मज़ाक में सातवी कक्षा में आ गया... लगा ऐसा, मानो किसी पाप से छुटकारा मिल गया
अनायास अगले ही दिन तैराकी की तम्मना जागी तो जाके गाँव के तालाब में डुबकी लगादी
उस चार फीट की गहराई में सर जाके पत्थर से टकराया, फिर अगले दो मिनट तक कुछ बोल नहीं पाया
डर इस बात का ना था की बोल नहीं पाऊंगा, पर पापा को पता चल गया तो हमेशा के लिए डुबकी भूल जाऊंगा!

मेरा मित्र पिंटू भी कम सज्जन ना था.... एक दिन एक भले मानुस को प्रणाम टीचर कह के सटक ही रहा था की उनकी धीमी सी आवाज़ आई - मैं टीचर नहीं हूँ... पिंटू ने बिना समय गवाए चिल्ला दी - आपको थोड़े ही बोला था
छात्रावास के दिन भी कम रोचक नहीं हुआ करते थे, जब रात को मूवी देखने के लिए सुबह उठक बैठक किया करते थे
फिर जब बजती थी घंटी मेस की, घटिया खाने से पहले माँ को याद किया करते थे!

याद आती है दादी की हर एक कहानिया.... जिसमे ना थी चंदा मामा की एक भी शैतानिया......
बंधू, वोह बचपन के दिन भी क्या दिन थे... जब हमारी हरकत से, हमारे सिबा सब परेशान थे......
आज बरसो बाद फिर से मीटिंग में, डिजाईन चेंज ने मचा दी है बचपन की खुजली......
मन तो अभी भी करता है, थम्ब के बदले उठा दूँ बीच की ऊँगली!!