दूर कहीं सपनो के बीच सो रही है तू,
मैं यहाँ तेरी याद में जाग भी नहीं पा रहा!
पलकों से पूछता हूँ क्यों इतना नादान बन गया है तू,
वो भी तुझे याद कर गुमसुम सा हो रहा!
यहाँ बर्फ की चादर में लिपट रही है धरती,
मैं तुझे दिल की चादर में ढूंढ भी ना पा रहा!
दिल से पूछता हूँ क्यों इतना अंजान बनता है तू,
वो भी तुझे याद कर गुमसुम सा हो रहा!
कुछ लहरे उठ रही है मन में जिसे समझ सकती है बस तू ही तू,
मैं तो खुद की अरमानो को भी ना समझ पा रहा!
खुद से पूछता हूँ क्यों इतना नादान हो रहा है तू,
वो भी तुझे याद कर गुमसुम सा हो रहा!
डर लगता है खुद को ना भूल जाऊ तेरी याद में,
मैं अपनी परछाई को भी ना पहचान पा रहा!
खुद से पूछता हूँ क्यों इतना बेईमान हो रहा है तू,
वो भी तुझे याद कर गुमसुम सा हो रहा!
तू ही बता दे ए हुस्न अब क्या करू तेरी याद में,
इस बेदर्द मौसम पे भरोसा भी ना कर पा रहा!
ना पूछना है खुद से अब कुछ भी, की क्या कर रहा है तू,
मैं भी तुझे याद कर गुमसुम सा हो रहा!!